राय साहब बाबु रासधारी सिंह
बाबु रासधारी सिंह यानी राय साहब, जिनका जन्म 11 अप्रैल 1856 के छितरौर बिहार के बेगूसराय और वर्तमान के पूर्व में मुंगेर में हुआ था। बाबू कन्हैया सिंह और हनुमान सिंह दोनों भाई थे। दोनों भाईयों ने कड़ी मेहनत कर संपत्ति बनाई। इनकी मेहनत का ही नतीजा था उनकी रियासत इतनी बड़ी हो गई की बिहार के कई जिलों में वह असीमित संपत्ति के मालिक हो गए। कन्हैया सिंह के तीन पुत्र थे, बाबू रासधारी सिंह, शिवाधिन सिंह एवं रामाधीन सिंह हुए। बड़े बेटे रासधारी सिंह अपने कुशाग्र बुद्धि और दयालु व्यक्तित्व के कारण उस वक्त की रियासत में लोकप्रिय थे। उन्होंने बचपन से ही सामाजिक कल्याण के लिए खुद को समर्पित कर दिया था। वहीं, उनके दोनों भाईयों ने गृहस्थी को संभाला । यह लोग जाति से ब्राह्मण- भूमिहार थे और दरभंगा के भुसारी बैलाचे में इनके पूर्वज आए थे। जो पूर्व भारद्वाज गोत्र के मैथिल ब्राह्मण थे।
एक व्यक्ति जिसने अपना पूरा जीवन जनता की खुशियों के लिए समर्पित कर दिया। उस वक्त में वह अपने आप एक चलती- फिरती सरकार थे, जिन्होंने अपनी जनता की तकलीफों को हल करने के लिए हजारों बीघा जमीन दान में दे दी। उनकी जमीन पर बसे हजारों परिवार आज भी नम आंखों से बताते हैं कि उनके बाद कोई ऐसा व्यक्ति नहीं आया, जिसने उनके लिए कुछ किया हो।
बाबु रासधारी सिंह को कम उम्र में समझ में आ गया था कि अगर इंसान शिक्षित होगा तभी आने वाली पीढ़ियां भी खुश रह पाएगी। उन्होंने लोगों की भलाई को ध्यान में रखते हुए हजारों बीघा जमीन दान की। उन्होंने जमीनों पर गरीबों को बसाया और साथ ही शिक्षा पर जोड़ दिया। लोगों तक शिक्षा कैसे पहुंचे, इसलिए उन्होंने अपने दोनों भाईयों को पढ़ाया साथ ही उनके वंशजों को भी शिक्षित किया ताकि आने वाली पीढ़ी तक शिक्षा का फल पहुंच सके। उनके द्वारा बोएं गए शिक्षा के बीज का नतीजा भी उन्हें जल्द मिला।
उस जमाने में राय साहब का नाम सुनते ही लोग समझ लेते हैं थे कि यह लोग अत्यंत उच्च शिक्षित परिवार से हैं। इसके बाद वंशजों ने राय साहब के सपनों को शिक्षित होकर जिंदा रखा। उनके परिवार ने शिक्षा के पेड़ को आगे बढ़ाया। आजाद भारत में बिहार के प्रथम आईपीएस अवध प्रसाद सिंह और उनके पुत्र बाबू ज्योति कुमार सिंह आईपीएस थे। उनके अन्य पुत्र ने विदेशों में जाकर नाम रोशन किया। अभी उनके परिवार से अधिकतम लोग आईपीएस,आईएएस,रजिस्टर जज,डॉक्टर,वकील के पद पर है। शिक्षा के क्षेत्र के साथ- साथ इन्होंने अभिनय के क्षेत्र में भी अपना नाम बनाया है। परिवार के कुछ लोग अभिनेता और निर्देशक भी हैं। शिक्षा की इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए परिवार के लोग आज भी आईआईटी, बीटेक और प्रोफेसर के पद है। यह सब सीख राय साहब के द्वारा इस परिवार को दी गई है,जिसका अनुकरण आज भी परिवार कर रहा है।बाबु रासधारी सिंह नाम सुनते हैं आज भी लोग सम्मान की नजर से उनके वंशजों को देखते हैं।
राय साहब अंग्रेजों के द्वारा दिया एक उपाधि है. जो पूर्वी उत्तर प्रदेश, दिल्ली, बिहार और अन्य राज्यों के ज्यादातर जमींदार लोगों का उपनाम है। इसका अर्थ होता है राजा या बहादूर। यह ब्रिटिश शासन काल में प्रदान किए जाने वाले एक सम्मान था। ब्रिटिश साम्राज्य में कुछ मानक ब्रिटिशओ ने रखा था इन सारे बिंदुओं से जो रियासती परिपूर्ण होंगे उन्हें ही (राय साहब) की उपाधि दी जाएगी उस वक्त सारे मानकों पर सिर्फ रासधारी सिंह ही उतर रहे थे राय साहब एक ऐसी उपाधि जिसे लेने के लिए लोग तरसते थे,लेकिन सहृदयता,सुंदर व्यक्तित्व एवं न्याय प्रिय होने के कारण अंग्रेजों ने उन्हें ही यह खिताब दिया