राय साहब बाबु रासधारी सिंह: बेगुसराय के धरोहर

रासधारी सिंह, जिन्होंने बिहार के बेगूसराय में जन्म लिया , एक समाजसेवी और शिक्षा प्रेमी व्यक्ति थे। उन्होंने हजारों बीघा जमीन दान करके गरीबों के लिए आवास और शिक्षा की सुविधा प्रदान की। उनके परिवार ने उनकी प्रेरणा से शिक्षा एवं सामाजिक क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिए।

प्राथमिक जानकारी

बाबु रासधारी सिंह यानी राय साहब, जिनका जन्म 11 अप्रैल 1856 के छितरौर बिहार के बेगूसराय और वर्तमान के पूर्व में मुंगेर में हुआ था। एक व्यक्ति जिसने अपना पूरा जीवन जनता की खुशियों के लिए समर्पित कर दिया। उस वक्त में वह अपने आप एक चलती- फिरती सरकार थे, जिन्होंने अपनी जनता की तकलीफों को हल करने के लिए हजारों बीघा जमीन दान में दे दी। उनकी जमीन पर बसे हजारों परिवार आज भी नम आंखों से बताते हैं कि उनके बाद कोई ऐसा व्यक्ति नहीं आया, जिसने उनके लिए कुछ किया हो। 

राय साहब बाबु रासधारी सिंह

उस वक्त के सरकार कहलाते थे राय साहब

उनसे जुड़े लोग बताते हैं कि उस जमाने में उन्हें उस वक्त का सरकार कहा जाता था, उन्होंने कभी धर्म को बीच में आने नहीं दिया। वह एकता की एक मिसाल थे।उनकी दहलीज से कोई भी आदमी खाली हाथ नहीं लौटा। उनकी कोशिश होती थी कि जनता की हर समस्या को हल कर सके, जिनसे उनका भला हो सके। एक उदाहरण के रूप में, साम्हो के एक व्यक्ति जिनकी हत्या कर दी गई थी उस हत्याकांड मामले में अभियुक्त को क्रिमिनल कोर्ट में सजा सुनाई जा रही थी और क्रिमिनल कोर्ट राय साहब के बगीचा में बैठा था उसमें एक जज राय साहब भी थे और राय साहब ने उस हत्याकांड मामले के आरोपी को उम्र कैद की सजा भी सुनायी , इस तरह के सैकड़ो उदाहरण मिलते है | उनके जाने के बाद भी उनके परिवार के लोगों ने उनकी इस विरासत को संभाला।

परिचय

रासधारी सिंह ने बचपन से ही खुद को सामाजिक कार्यों के लिए समर्पित कर दिया था। वह एक समाजसेवी थे, जिन्होंने बहुत कम उम्र में समझ लिया था कि शिक्षा ही एक ऐसा हथियार है, जो आने वाली पीढ़ियों को आगे बढ़ने में मदद करेगी। उस वक्त बेगूसराय में बहुत -सी रियासतें हुआ करती थी और अनेकों राजाएं थे, लेकिन जब भी जनता को मदद चाहिए होती थी, वह राय साहब के पास जाती थी। राय साहब की मृत्यु जब हुई थी उनके दरवाजे पर लगातार 13 दिन ब्रिटिश सरकार के आला अधिकारी उनके दरवाजे पर कैंप किए हुए थे क्योंकि उनकी मृत्यु के बाद पूरे जिले और पूरे बिहार राज्य में शोक की लहर दौड़ गई थी और पूरे जिला और कई राज्यों से लोग उनके श्राद्धकर्म में पहुंचे थे |

जीवनी  

बाबू कन्हैया सिंह और हनुमान सिंह दोनों भाई थे। दोनों भाईयों ने कड़ी मेहनत कर संपत्ति बनाई। इनकी मेहनत का ही नतीजा था उनकी रियासत इतनी बड़ी हो गई की बिहार के कई जिलों में वह अकूत संपत्ति के मालिक हो गए। कन्हैया सिंह के तीन पुत्र थे, बाबू रासधारी  सिंह, शिवाधिन सिंह एवं रामाधीन सिंह हुए।  बड़े बेटे रासधारी सिंह अपने कुशाग्र बुद्धि और दयालु व्यक्तित्व के कारण उस वक्त की रियासत में लोकप्रिय थे। उन्होंने बचपन से ही सामाजिक कल्याण के लिए खुद को समर्पित कर दिया था। वहीं, उनके दोनों भाईयों ने गृहस्थी को संभाला । यह लोग जाति से ब्राह्मण- भूमिहार थे और दरभंगा के भुसारी बैलाचे में इनके पूर्वज आए थे। जो पूर्व भारद्वाज गोत्र के मैथिल ब्राह्मण थे। 

 प्रमुख कार्य

बाबु रासधारी सिंह राय साहब उन्होंने अपने दोनों भाईयों को पढ़ाया साथ ही उनके वंशजों को भी शिक्षित किया ताकि आने वाली पीढ़ी तक शिक्षा का फल पहुंच सके। उनके द्वारा बोएं गए शिक्षा के बीज का नतीजा भी उन्हें जल्द मिला। उस जमाने में छितरौर राय साहब का नाम सुनते ही लोग समझ लेते हैं थे कि यह लोग अत्यंत उच्च शिक्षित परिवार से हैं। इसके बाद वंशजों ने राय साहब के सपनों को शिक्षित होकर जिंदा रखा।

वर्ष 1902 की बात है, जब बाबू रासधारी सिंह, जिन्हें ‘राय साहब’ के नाम से भी जाना जाता था, उन्होंने एक महत्वपूर्ण पहल की शुरुआत की। उन्होंने बेगूसराय से लेकर सामहो पथ तक की सड़क का सर्वे और निर्माण करवाया था।
राय साहब की यह पहल बस एक सड़क का निर्माण नहीं था, बल्कि इसमें उनका एक महत्वपूर्ण संदेश भी छिपा था। वे अपने पंचायत के लोगों की शिक्षा के प्रति अपने समर्पण को दिखाते हुए छितरौर में स्कूल स्थापित करने का निर्णय लिया। उनका उद्देश्य था कि इस क्षेत्र के लोग शिक्षित होकर न सिर्फ खुद को उजागर करें, बल्कि अपने पंचायत और जिले का भी मान बढ़ाएं।
इसके साथ ही, बिहार के पहले मुख्यमंत्री डॉक्टर श्री कृष्ण सिंह भी राय साहब के स्कूल से शिक्षा प्राप्त करने का सौभाग्य पाए थे, जिससे उनकी शिक्षा संकल्पना को और भी मजबूती मिली।
राय साहब के योगदान का यह अनूठा पहलू भी था कि उन्होंने बेगूसराय में कई स्थानों पर पुस्तकालय स्थापित किए थे। उनके कार्यकाल में वे अक्सर अपने द्वार पर ब्लॉक कचहरी का आयोजन किया करते थे जिससे गरीबो एवं वंचित को न्याय मिलता था |

परिवार

उनके परिवार ने शिक्षा के पेड़ को आगे बढ़ाया। आजाद भारत में बिहार के प्रथम आईपीएस अवध प्रसाद सिंह और उनके पुत्र बाबू ज्योति कुमार सिंह आईपीएस थे। उनके अन्य पुत्र ने विदेशों में जाकर नाम रोशन किये। अभी उनके परिवार से अधिकतम लोग आईपीएस,आईएएस,रजिस्टर जज,डॉक्टर,वकील के पद पर है। शिक्षा के क्षेत्र के साथ- साथ इन्होंने अभिनय के क्षेत्र में भी अपना नाम बनाया है। परिवार के कुछ लोग अभिनेता और निर्देशक भी हैं। शिक्षा की इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए परिवार के लोग आज भी आईआईटी, बीटेक और प्रोफेसर के पद पर है।  यह सब सीख राय साहब के द्वारा इस परिवार को दी गई है,जिसका अनुकरण आज भी परिवार कर रहा है।राय साहब नाम सुनते हैं आज भी लोग सम्मान की नजर से उनके वंशजों को देखते हैं।

राय साहब की उपाधि

राय साहब अंग्रेजों के द्वारा दिया एक उपाधि है. जो पूर्वी उत्तर प्रदेश, दिल्ली, बिहार और अन्य राज्यों के ज्यादातर जमींदार लोगों का उपनाम है। इसका अर्थ होता है राजा या बहादूर। यह ब्रिटिश शासन काल में प्रदान किए जाने वाले एक सम्मान था। ब्रिटिश साम्राज्य में कुछ मानक ब्रिटिशओ ने रखा था इन सारे बिंदुओं से जो रियासती परिपूर्ण होंगे उन्हें ही (राय साहब) की उपाधि दी जाएगी उस वक्त सारे मानकों पर सिर्फ रासधारी सिंह ही उतर रहे थे राय साहब एक ऐसी उपाधि जिसे लेने के लिए लोग तरसते थे,लेकिन सहृदयता,सुंदर व्यक्तित्व एवं न्याय प्रिय होने के कारण अंग्रेजों ने उन्हें ही यह खिताब दिया

चकवार समाज

चकवार समाज अपने गौरवशाली इतिहास के कारण जाना और पहचाना जाता है। बेगूसराय के लिए चाक राज्य का इतिहास चंदन के समान है। चकवार समाज भारत के बिहार राज्य के बेगूसराय क्षेत्र में स्थित बेलांच सुदाई मूल के भूमिहार ब्राह्मण थे। वे मिथिला के महान चिरायु मिश्र राजपुरोहित की वंशज थे। 18वीं सदी में, उन्होंने सैन्य शक्ति को बढ़ावा दिया और दक्षिण बिहार के बड़े-बड़े क्षेत्रों पर नियंत्रण पाया। मुस्लिम और ब्रिटिश स्रोतों के अनुसार, चकवार राज्य के क्षेत्र ने पूर्व में राजमहल और उत्तर में दरभंगा तक फैलाव था। मुग़ल साम्राज्य के विघटन के बाद चकवार बढ़ती ताकत में आए और अपने हस्ताक्षर और मुहरों के साथ भूमि दान पत्र जारी करके स्वतंत्रता की मांग की। इन्हें विभिन्न चकवार राजाओं ने जारी किए, जिनमें 1718 से 1727 तक शासन करने वाले राजा बख्तावर सिंह भी शामिल थे। चकवारो की ताकत का मूल कारण था कि उन्होंने गंगा के विभिन्न महत्वपूर्ण नदी मार्गों का नियंत्रण किया था और यूरोपीय व्यापारियों से बड़ी मात्रा में धन वसूल किया। उन्होंने पड़ोसी क्षेत्रों पर दरार भी की। 1719 से 1721 तक के यूरोपीय स्रोतों में यह उल्लिखित है कि यूरोपीय और चकवारो के बीच झड़पें आम थीं और कई व्यापारी चकवार हमलों से अधिक सुरक्षा की मांग करते थे।1720 में, नसरत खान को बिहार के गवर्नर के रूप में नियुक्त किया गया, हालांकि वह चकवरों को नीचा नहीं कर सके। गंगा के उस पार शामहो एवं इस तरफ 12 गांव चकवारो का है,जब चकवारो का पतन हो रहा था उस समय राय साहब चकवारो का उत्थान करने की ठानी और सफल भी रहे |